Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Tuesday, 22 March 2011

"अमर शहीद भगत सिंह"


अमर शहीद भगत सिंह का नाम किसी भी भारतीय के लिए अपरिचित नहीं है। इतनी अल्प अवस्था में उन्होंने देशभक्ति, आत्मबलिदान, साहस आदि सद्गुणों का जो उहाहर प्रस्तुत किया, एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। भारत राष्ट्र के निर्माण में भगत सिंह के महान कार्यों का योगदान अपने-आप में अद्वितीय है,  इसके लिए भारत युग-युग तक भगत सिंह का ऋणी रहेगा।

आखिर क्या बात थी कि इतनी कम अवस्था में भी इस वीर ने जीतेजी और बलिदान हो जाने के बाद भी अंग्रेज सरकार का सुख-चैन हराम कर दिया था। वह कौन-सा कारण था कि उस समय के प्रसिद्ध नेताओं, राजनीति के महारथियों को भी इस युवक के विषय में कुछ सोचने के लिए बाध्य बोना पड़ा था। और उस समय भारतीय राजनीति में छाये हुए महात्मा गांधी जी को भी इस तेजस्वी व्यक्तित्व की शहादत पर अलोचना का शिकार बनना पड़ा था ? निश्चय ही इस महान विभूति की स्वार्थरहित देशभक्ति, त्याग- भावना तथा अद्वितीय साहस ही इसका कारण रहा होगा।
पंजाब में जन्म लेकर भी उनका दृष्टिकोण केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं था। समस्त भारत भूमि उनकी मातृभूमि थी, वे समस्त भारतीयों के अपने थे। एक सिख परिवार में जन्म लेकर भी वह केवल शिख नहीं थे, वह एक सच्चे भारतीय, एक सच्चे मानव थे। एक सच्चे मनुष्य का दृष्टिकोण किसी धर्म, जाति अथवा राज्य तक ही सीमित नहीं होता। उन्होंने सारे भारत के हितों को देखकर ही अपने जीवन का बलिदान किया था। इतिहास में जब भगत सिंह का स्थान अपने-आप में अनूठा है।

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गाँव में हुआ था। (अब यह स्थान पाकिस्तान में चला गया है।) उनके जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेने के कारण सेंट्रल जेल में बन्द थे। सरदार किशन सिंह के दो छोटे भाई थे- सरदार अजीत सिंह तथा सरदार स्वर्ण सिंह। इस समय सरदार अजीत सिंह मांडले जेल में तथा सरदार स्वर्ण सिंह अपने बड़े भाई सरदार किशन सिंह के साथ ही सजा भुगत रहे थे। इस प्रकार भगत सिंह के जन्म के समय उनके पिता तथा दोनों चाचा देश की आजादी के लिए जेलों में बन्द थे। घर में उनकी माँ श्रीमति विद्यावती, दादा अर्जुन सिंह तथा दादी जयकौर थीं। किन्तु बालक भगत सिंह का जन्म ही शुभ था अथवा दिन ही अच्छे आ गये थे कि उनके जन्म के तीसरे ही दिन उसके पिता सरदार किशन सिंह तथा सरदार स्वर्ण सिंह जमानत पर छूट कर घर आ गये तथा लगभग इसी समय दूसरे चाचा सरदार अजीत सिंह भी रिहा कर दिये गये। इस प्रकार उनके जन्म लेते ही घर में यकायक खुशियों की बाहर आ गयी, अत: उनके जन्म को शुभ समझा गया।
इस भाग्यशाली बालक का नाम उनकी दादी ने भागा वाला अर्थात् अच्छे भाग्य वाला रखा। इसी नाम के आधार पर उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा।
भगत सिंह अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे। सरदार किशन सिंह के सबसे बड़े पुत्र का नाम जगत सिंह था, जिसकी मृत्यु केवल ग्यारह वर्ष की छोटी अवस्था में ही हो गयी थी जब वह पाँचवीं कक्षा में ही पढ़ता था। इस प्रकार पहले पुत्र की इतनी छोटी अवस्था में मृत्यु हो जाने के कारण भगत सिंह को ही अपने माता-पिता की सबसे पहली सन्तान माना जाता है। भगत सिंह के अलावा सरदार किशन सिंह के चार पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ और थीं। कुल मिलाकर उनके छ: पुत्र हुए थे तथा तीन पुत्रियाँ, जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- जगत सिंह, भगत सिंह, कुलवीर सिंह, कुलतार सिंह, राजेन्द्र सिंह, रणवीर सिंह, बीबी अमर कौर, बीबी प्रकाशकौर (सुमित्रा) तथा बीबी शकुन्तला।
देशप्रेम की शिक्षा भगत सिंह को अपने परिवार से विरासत में मिली थी। उनके दादा सरदार अर्जुन सिंह भी अंग्रेज सरकार के कट्टर विरोधी थे। यह वह समय था, जब अंग्रेजों के विरुद्ध एक भी शब्द बोलना मौत को बुलावा देने के समान था। इन दिनों अंग्रेज की प्रशंसा करना लोग अपना कर्तव्य समझते थे,  इसी से उन्हें सब प्रकार का लाभ होता था।
इसलिए सरदार अर्जुन सिंह के दो भाई सरदार बहादुर सिंह तथा सरदार दिलबाग सिंह भी अंग्रेजों की खुशामद करना अपना धर्म समझते थे, जबकि सरदार अर्जुन सिंह को अंग्रेजों से घृणा थी। अत: उनके दोनों भाई उन्हें मूर्ख समझते थे। सरदार अर्जुन सिंह के तीन पुत्र थे- सरदार किशन सिंह, सरदार अजीत सिंह तथा सरदार स्वर्ण सिंह। तीनों भाई अपने पिता के समान ही निडर और देशभक्त थे।
भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह पर भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में सरकार ने 42 बार राजनीतिक मुकदमे चलाये। उन्हें अपने जीवन में लगभग ढाई वर्ष की कैद की सजा हुई तथा दो वर्ष नजरबन्द रखा गया। सरदार अजीर सिंह से अंग्रेज सरकार अत्यधिक भयभीत थी। अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलनों मे भाग लेने के कारण जून 1907 में उन्हें भारत से दूर बर्मा की राजधानी रंगून भेज दिया गया। भगत सिंह के जन्म के समय वह वहीं कैद में थे। कुछ ही महीनों बाद वहाँ से रिहाँ होने के बाद वह ईरान, टर्की एवं आस्ट्रिया होते हुए जर्मनी पहुँचे। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के हार जाने के पर वह वहाँ से ब्राजील चले गये थे। सन् 1946 में मध्यावधि सरकार बनने पर पण्डित जवाहरलाल नेहरू के प्रयत्नों से पुन: भारत आये।
 
संसार का प्रत्येक प्राणी जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, यह चक्र सदा से चलता आया है और चलता रहेगा। न जाने कितने लोग इस दुनिया में आकर यहाँ से चले गये हैं, आज कोई उनका नाम भी नहीं जानता। किन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके इस दुनिया से चले जाने पर भी वे अपने देश और समाज के दिलों से कभी नहीं जाते, अपने श्रेष्ठ कार्यों से उनका नाम सदा-सदा के लिए अमर हो जाता है। ऐसा ही एक नाम शहीद भगत सिंह का भी है, जिन्हें भारतवासी युगों तक नहीं भूल पाएँगे।
                                        "इंक़िलाब ज़िन्दाबाद"

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