Monday, 4 November 2013
" जो परवश होकर बहता हैं वह खून नहीं हैं पानी हैं "
उस दिन दुनिया ने सही खून की कीमत पहचानी थी,
बोले स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हे करना होगा,
आज़ादी का संग्राम कही पैसे पर खेला जाता हैं ,
आज़ादी का इतिहास कही काली स्याही लिख पाती हैं ?
यह कहते कहते वक्ता की आँखों में लहू उतर आया,
अजनुबाहू ऊँची करके वो बोले ” रक्त मुझे देना “
हो गयी सभा में उथल-पुथल सीने में दिल ना समाते थे,
हम देंगे-देंगे खून शब्द बस यही सुनाई देते थे,
बोले सुभाष ऐसे नहीं बातों से मतलब सरता हैं,
इसको भरने वाले जन को सर्वस्व समर्पण करना हैं,
पर यह साधारण पत्र नहीं आज़ादी का परवाना हैं,
वह आगे आये जिसके तन में भारतीय खून बहता हो,
वह आगे आये जो इसपर खुनी हस्ताक्षर देता हो ,
सारी जनता हुंकार उठी हम आते हैं हम आते हैं,
साहस से बढे युवक उस दिन, देखा बढ़ते ही आते थे,
फिर उसी रक्त स्याही में वो अपनी कलम डुबाते थे,
उस दिन तारों ने देखा हिंदुस्थानी इतिहास नया,
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