Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Saturday, 22 March 2014

२३ मार्च शहीदी दिवस

'इन्दम राष्ट्राय, इन्दम न मम', सब कुछ राष्ट्र का है, हमारा राष्ट्र के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। 
23 मार्च 1931 शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फाँसी दी गई। इसी दिन इनका परिवार मिलने आया तो केवल माता पिता के लिए ही आज्ञा मिली। तब पिता ने कहा मिलेगे तो सभी, वरना कोई नही। तब उनके साथ उनका परिवार ही नही वरन अन्याय के विरूद्ध नारे लगाती जनता भी थी। 

फासी के पहले भगत सिह सुखदेव व राजगुरु ने एक दुसरे से गले मिले तथा इंकलाब जिन्दाबाद! साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! का नारा लगा कर अपने फंदे को चूमा और गले मे डाल कर सहज भाव से जल्लाद से कहा “कृपा कर आप इन फंदो को ठीक क्रर लें।...........और उन्हे फासी दे दी गई। 

खबर आग की तरह फैली, लोग जेल परिसर में जमा होने लगे। इतना ही पता लगा कि लाशो को जलाने के लिए बाहर भेज दिया गया है। लोग उस स्थान के खोज मे इधर उधर बिखर गये। दूसरे दिन सबेरे लोगो ने देखा कि स्थान स्थान पर पोस्टर चिपके है- “सिंख ग्रंथी और हिन्दु पंडितो के द्वारा भगतसिह, सुखदेव और राजगुरू का अंतिम संस्कार कर दिया गया।“ जैसे ही घोषणा हुई सारा देश जल उठा। इस विद्रोह को दबाने के लिए सरकार को कई शहरो मे सेनाए घुमानी पडी।
 
सरदार बल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता मे कराची कॉग्रेस मे 29 मार्च को शोक प्रस्ताव के बाद भगतसिह और उनके साथियो के संबंध मे प्रस्ताव पारित किया। जिसपर काफी विवाद और मतभेद हुआ, यह था "यह कॉग्रेस किसी भी रूप अथवा प्रकार की राजनीतिक हिंसा से अपना संबध न रखते हुए उसका समर्थन न करते हुए स्वर्गीय भगतसिह और उनके साथी सर्वश्री सुखदेव और राजगुरू के बलिदान और बहादुरी की प्रशंसा को अभिलेखबद्ध करती है और इनकी जीवन हानी पर शोकातुर परिवारो के साथ शोक प्रकट करती है।"

जेल मे रहते हुए भगतसिह ने कई पुस्तके लिखी जिनमे 4 महत्वपूर्ण थी 
(1) आइडियल आव सोशलिज्म (समाजवाद का आदर्श) 
(2) दि डोर टु डेथ (मृत्यु के द्वार पर) 
(3) आटोबायग्राफी (आत्मकथा) 
(4) दि रिविल्यूशनरी मूवमेंट आव इडिया विद शार्ट बायग्राफिक स्कैचेस आव दि रिवोल्यूशरीज (भारत मे क्रातिकारी आन्दोलन और क्रातिकारियो का संक्षिप्त परिचय)। 

दुख की बात है कि यह पुस्तके अंतत: नष्ट कर दी गई। पुस्तके नष्ट की जा सकती थीं, आवाज दबायी जा सकती थी लेकिन विचार तो बीज होता है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फाँसी अंग्रेजी सरकार और उसकी सत्ता के ताबूत पर आखिरी कील साबित हुई। जो भारत भूमि एसे सपूतों की जन्मस्थलि हो उसे तो आज़ाद होना ही था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का बलिदान यह राष्ट्र कभी भुला न सकेगा। 

" लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा।"
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..
वतन पर मिटने वालों को यही बाकी निशाँ होगा.."

जन्मों की गाथा लिख देश के नाम चले गये,
हर जन्म में करना है माँ भारती को प्रणाम लिख चले गये
यहाँ सिरफिरे भूलकर बलिदानों के बलिदान पड़े है स्वार्थ के चक्कर में
कर दिया जीवन दान माँ भारती के चरणों में
किसको कहते है वतनपरस्ती दिखा गये
देश के आगे होती जान कितनी सस्ती दिखा गये
सत्ता की पैरोकारी से पहले बलिदानी बलिदान दिखा गये
स्वार्थ को तज देश की राह दिखा दिखा गये
कोटिश: नमन भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तुम्हे हम शीश झुकाते हैं
कैसे कहे देश को हम फिर बहुत कमजोर पाते हैं
एक अलख और जगा जाओ ...

एक दीप देश के नाम मिटने का जला जाओ
कैसे बनाऊँ हर तिनके को मशाल सिखा जाओ...


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