Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Saturday 28 September 2013

आज क्रांति फिर लाना है

आज सभी आज़ाद हो गए, फिर ये कैसी आज़ादी
वक्त और अधिकार मिले, फिर ये कैसी बर्बादी
संविधान में दिए हक़ों से, परिचय हमें करना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

जहाँ शिवा, राणा, लक्ष्मी ने, देशभक्ति का मार्ग बताया
जहाँ राम, मनु, हरिश्चन्द्र ने, प्रजाभक्ति का सबक सिखाया
वहीं पुनः उनके पथगामी, बनकर हमें दिखना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

गली गली दंगे होते हैं, देशप्रेम का नाम नहीं
नेता बन कुर्सी पर बैठे, पर जनहित का काम नहीं
अब फिर इनके कर्त्तव्यों की, स्मृति हमें दिलाना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

पेट नहीं भरता जनता का, अब झूठी आशाओं से
आज निराशा ही मिलती है, इन लोभी नेताओं से
झूठे आश्वासन वालों से, अब ना धोखा खाना है,
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

दिल बापू का टुकड़े होकर, इनकी चालों से बिखरा
रामराज्य का सुंदर सपना, इनके कारण ना निखरा
इनकी काली करतूतों का, पर्दाफाश कराना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

सत्य-अहिंसा भूल गये हम, सिमट गया नेहरू सा प्यार
बच गए थे जे. पी. के सपने, बिक गए वे भी सरे बज़ार
सुभाष, तिलक, आज़ाद, भगत के, कर्म हमें दोहराना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

आज जिन्हें अपना कहते हैं, वही पराए होते हैं
भूल वायदे ये जनता के, नींद चैन की सोते हैं
उनसे छीन प्रशासन अपना, 'युवाशक्ति' दिखलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

सदियों पहले की आदत, अब तक ना हटे हटाई है
निज के जनतंत्री शासन में, परतंत्री छाप समाई है
अपनी हिम्मत, अपने बल से, स्वयं लक्ष्य को पाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

देशभक्ति की राह भूलकर, नेतागण खुद में तल्लीन
शासन की कुछ सुख सुविधाएँ, बना रहीं इनको पथहीन
ऐसे दिग्भ्रम नेताओं को, सही सबक सिखलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

काले धंधे रिश्वतखोरी, आज बने इनके व्यापार
भूखी सोती ग़रीब जनता,सहकर लाखों अत्याचार
रोज़ी-रोटी दे ग़रीब को, समुचित न्याय दिलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

राष्ट्र एकता के विघटन में, जिस तरह विदेशी सक्रिय हैं
उतने ही देश के रखवाले, पता नहीं क्यों निष्क्रिय हैं
प्रेम-भाईचारे में बाधक, रोड़े सभी हटाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

कहीं राष्ट्रभाषा के झगड़े, कहीं धर्म-द्वेष की आग
पनप रहा सर्वत्र आजकल, क्षेत्रीयता का अनुराग
हीन विचारों से ऊपर उठ, समता-सुमन खिलाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

अब हमको संकल्पित होकर, प्रगति शिखर पर चढ़ना है
ऊँच-नीच के छोड़ दायरे, हर पल आगे बढ़ना है
सारी दुनिया में भारत की, नई पहचान बनाना है
भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...

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