भगत सिंह के जीवन का सबसे रोमांचक प्रसंग वह रहा होगा जब फांसी से दो घंटे पहले उनके वकील प्राणनाथ मेहता उनसे मिलने आये थे और उन्होंने भगत सिंह से पूछा था कि क्या वह देश के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह का उत्तर था, आप मेरे दो नारे उस तक पहुंचाएं एक साम्राज्यवाद खत्म हो (डाउन विद इम्पीरिलिज्म) और दूसरा इंकलाब जिंदाबाद (लांगलिव रेवोल्यूशन) ।
श्री मेहता ने उनसे पूछा कि आज तुम कैसे हो? तो भगत सिंह ने कहा कि हमेशा की तरह खुश हूं।
उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हें किसी चीज की इच्छा है तो भगत सिंह बोले कि हां, मैं दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी सेवा कर सकूं। एक अन्य प्रसंग में जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी के तख्ते की ओर ले जाया जा रहा था, तो जेल का वार्डन चरत सिंह उनके कान में फुसफुसाया, ‘वाहेगुरु से प्रार्थना कर लो’। भगत सिंह इस पर हंसकर बोले, ‘मैंने पूरी जिंदगी परमात्मा को कभी याद नहीं किया बल्कि उसे दुखियों और गरीबों की वजह से कोसा जरूर है। अब अगर मैं उससे माफी मांगूगा तो वह कहेगा कि यह बुजदिल है जो माफी चाहता है, क्योंकि इसका अंत निकट है।
शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने हँसते-हँसते भारत की आजादी के लिए 23 मार्च 1931 को 7:23 बजे सायंकाल फाँसी का फंदा चूमा था।
फांसी पर जाते समय वे तीनों गा रहे थे -
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़तमेरी
मिट्टी से भी खुस्बू ए वतन आएगी ।
उस समय तक ‘वन्देमातरम्’ सभवत: सभी क्रान्तिकारियों का सबसे प्रिय नारा था। भगत सिंह भी इसका उपयोग करते थे। इसी के साथ उन्होंने नौजवानों को नारा दिया ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ फांसी से कुछ दिन पहले, 2 फरवरी 1931 को भगत सिंह ने अपने साथी नौजवानों को एक संदेश भेजा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि इंकलाब जिंदाबाद का नारा हमारे लिए बहुत पवित्र है। इसका प्रयोग हमें बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। इस देश के क्रान्तिकारियों की लम्बी सूची हैं। उनकी संख्या भी कम नहीं है जो फांसी पर चढ़े, किन्तु भगत सिंह सिर्फ क्रान्तिकारी नहीं थे। वह अपने आप में पूरा विचार भी थे।
भगत सिंह प्रायः यह शेर गुनगुनाते रहते थे-
जबसे सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर से कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।।
फ़ासी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को लिखे पत्र में भगत सिह ने लिखा था -
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है,
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है,
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें,
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें।
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है,
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें,
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें।
इससे उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। शहीद भगत सिंह सदा ही शेर की तरह जिए. चन्द्रशेखर आजा़द से पहली मुलाकात के समय ही जलती मोमबती की लौ पर हाथ रखकर उन्होने कसम खाई कि उनका जीवन वतन पर ही कुर्बान होगा।
उसे यह फ़िक्र है हरदम,
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- नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
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- सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे,
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- चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही,
-
- आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ,
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- ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ,
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- बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी,
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- ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
- रहे रहे न रहे।
- भगत सिंह
भगत सिंह का पत्र सुखदेव के नाम:
भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज के छात्र थे। एक सुंदर-सी लड़की आते जाते उन्हें देखकर मुस्कुरा देती थी। सिर्फ भगत सिंह की वजह से वह भी क्रांतिकारी दल में शामिल हो गई। जब असेंबली में बम फेंकने की बात आई तो भगत सिंह को दल की जरूरत बताकर दल के लोगों ने उन्हें भेजे जाने से इंकार कर दिया। भगत सिंह के अंतरंग मित्र सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि तुम मरने से डरते हो और उस लड़की की वजह से ही ऐसा करने से डर रहे हो। इस आरोप से भगत सिंह का हृदय रो उठा और उन्होंने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असेंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर देकर अपने नाम करवाया। आठ अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहले उन्होंने सुखदेव को यह पत्र लिखा था।
प्रिय सुखदेव,
जब तक तुहें यह पत्र मिलेगा, मैं जा चुका होगा-दूर एक मंजिल की तरफ. मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं। हमेशा से ज्यादा. मैं यात्रा के लिए तैयार हूं, अनेक-अनेक मधुर स्मृतियों के होते और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी, एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा और मुझ पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए- कमजोरी का। आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं, पहले से कहीं अधिक।
आज मैं महसूस करता हूं कि वह बात कुछ भी नहीं थी। एक गलतफहमी थी. मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी। मैं कमजोर नहीं हूं। अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं भाई! मैं साफ दिल से विदा होऊंगा। क्या तुम भी साफ होगे? यह तुम्हारी बड़ी दयालुता होगी, लेकिन ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। गंभीरता और शांति से तुम्हें काम को आगे बढ़ाना है, जल्दबाजी में मौका पा लेने का प्रयत्न न करना। जनता के प्रति तुम्हारा कर्तव्य है, उसे निभाते हुए काम को निरंतर सावधानी से करते रहना। तुम स्वयं अच्छे निर्णायक होगे। जैसी सुविधा हो, वैसी व्यवस्था करना। आओ भाई, अब हम बहुत खुश हो लें। खुशी के वातावरण में मैं कह सकता हूं कि जिस प्रश्न पर हमारी बहस है, उसमें अपना पक्ष लिए बिना नहीं रह सकता। मैं पूरे जोर से कहता हूं कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर हूं और जीवन की आनंदमयी रंगीनियों ओत-प्रोत हूं, पर आवश्यकता के वक्त सब कुछ कुर्बान कर सकता हूं और यही वास्तविक बलिदान है। ये चीजें कभी मनुष्य के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह मनुष्य हो। निकट भविष्य में ही तुम्हें प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाएगा।
जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाए एक आवेश के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है। प्यार अपने आप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है। प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है। सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता. वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब। एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और अपने प्यार के सहारे आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाए रख सकते हैं। मैं यहां एक बात साफ कर देना चाहता हूं कि जब मैंने कहा था कि प्यार इंसानी कमजोरी है तो यह एक साधारण आदमी के लिए नहीं कहा था। आम आदमी जिस स्तर पर होते हैं, वह एक अत्यंत आर्दश स्थिति है। जब मनुष्य प्यार व घृणा इत्यादि के आवेगों पर काबू पा लेगा, जब मनुष्य अपना आधार आत्मा के निर्देश को बना लेगा, वह स्थिति मनुष्य के लिए अच्छा और लाभदायक होगा। क्या मैं यह आशा कर सकता हूं कि किसी खास व्यक्ति से द्वेष रखे बिना तुम उनके साथ हमदर्दी करोगे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है? लेकिन तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते जब तक तुम स्वयं उस चीज का शिकार न बनो। मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं? मैं बिल्कुल स्पष्ट होना चाहता था। मैंने अपना दिल साफ कर दिया है।
तुम्हारी हर सफलता और प्रसन्न जीवन की कामना सहित,तुम्हारा भाईभगत सिंह
जब-जब हम शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे शहीदों को याद करते हैं तो बरबस ये पंक्तियाँ याद आ ही जाती हैं-
कभी वो दिन भी आयेगा,
कि जब आजाद हम होंगे,
ये अपनी ही जमीं होगी,
ये अपना आसमां होगा,
शहीदों कि चिताओं पर,
लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का,
यही नामों-निशां होगा।
पुण्यतिथि के अवसर पर देश के इन वीर सपूतों को शत शत नमन !
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