Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Thursday, 22 March 2012

देश के तीन क्रांतिकारी सपूतों को नमन:





उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़













न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा

भारत माता के तीन वीर सपूत 

भगतसिंह :    शहीद ए आजम का जन्म 1907 में 27 और 28 सितंबर की रात पंजाब के लायलपुर जिले [वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद] के बांगा गांव में हुआ था। इसलिए इन दोनों ही तारीखों में उनका जन्मदिन मनाया जाता है। लाहौर सेंट्रल कालेज से शिक्षा ग्रहण करते समय वह आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ कई क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के मामले में उन्हें काला पानी की सजा हुई इसलिए उन्हें अंडमान निकोबार की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया लेकिन इसी दौरान पुलिस ने सांडर्स हत्याकांड के सबूत जुटा लिए और इस मामले में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 

शहीद सुखदेव : सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर पाकिस्तान में हुआ। भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से इन दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी, साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगतसिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था।

शहीद राजगुरु : 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ। शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे। पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार हो गए थे। 





पिताजी के नाम भगतसिंह का पत्र :
पूज्य पिताजी, 
नमस्ते 

मेरी जिंदगी मकसदे आला (ऊँचा उद्देश्य) यानी आजादी-ए-हिन्द के असूल (सिद्धांत) के लिए वक्फ (दान) हो चुकी है। इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और दुनियावी खाहशात (सांसारिक इच्छाएँ) वायसे कशिश (आकर्षक) नहीं है। 

आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था तो बापूजी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे खिदमते वतन (देशसेवा) के लिए वक्फ कर दिया गया है। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ। 

उम्मीद है आप मुझे माफ फरमाएँगे


आपका ताबेदार 
भगतसिंह 

-जय हिंद  

No comments:

Post a Comment