आओ दीप जलायें, दीवाली पर्व बनाएँ
घर घर में ऐसे दीप जलाएँ
भीतर बहार के अंधियारों को
क्यों ना हम मिल जुल कर मिटाएँ
देख प्रगती पड़ोसी की
हम क्यों लालचाएँ
दुर्गति करने जो हों आमदा
उन भूले भटकों को
सदमार्ग पर लाएँ।
जहाँ हो अंधविश्वास
अज्ञानता बन तिमिर छाये
जब मानव अहंकारवश हो भरमाये
कहीं जगमगाहटों में
वर पिता बने धन लुटेरे
उन की दृष्टि विकसित कर
भीतर बहार के अंधियारों को मिटाएँ
क्यों ना हम मिल जुल कर दीप जलाएँ।
जहाँ घने अंधेरों ने धर्म स्थानों में
भ्रम है फैलाए
घर आंगन में, दलानों में
प्रीति नहीं, नफरत फैलती
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में
आज मानवता के घातक
शरण पाते इन की दीवारों में
करें सत्य धर्म पालन
भीतर बहार के अंधियारों को मिटाएँ
क्यों ना हम मिल जुल कर दीप जलाएँ।
जलें दीप से दीप
प्रकाश हो सभी परिवारों में
तज अधर्म, सत्य मार्ग पर अग्रसर
भूलें जो हुईं, फिर ना दुहाराएँ
भीतर बहार के अंधियारों को मिटाएँ
क्यों ना हम मिल जुल दीप जलाएँ।
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