Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Monday, 4 July 2011

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !!



"अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"



"लंका पर विजय हासिल करने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने

छोटे भाई लक्ष्मन से कहा:

यह सोने की लंका मुझे किसी तरह से प्रभावित नहीं कर रही है

माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है।"



और आगे मै बात कहना चाहता हूँ कि...



तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?

मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?

किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं ?



भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है ?

नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है ?

भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है,

मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है।

जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं ?



भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,

एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है ।

जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,

देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है ।

निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं ?



खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से,

पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से,

तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है,

दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है।

मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं ?


दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं,

मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं,

घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन,

खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन।

आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं ?


उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है,

धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है,

तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है,

किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।

मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं ?



7 comments:

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद ...

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  3. अतिउत्तम आदरणीय अतिउत्तम

    ReplyDelete
  4. आदरणीय अतिउत्तम

    ReplyDelete