Thursday, 15 August 2013
" नमन है तुझको ऐ देश मेरे ऐ देश मेरे "
namana\ hO tuJakao
eo doSa maoro‚
eo doSa maoro‚ eo
doSa maoro.
gaMgaa ijasakI gaaod
maoM bahtI‚
Ait pavana ijasakI
jalaQaara.
BaUima ijasakI hO [tnaI
pavana‚
kNa ¹ kNa maoM
mamata kI Cayaa.
namana\ hO tuJakao
eo doSa maoro‚
eo doSa maoro‚ eo
doSa maoro.
Bagat Aajaad baaosa
ivavaoka‚
ijasako
gaaOrvaSaalaI sapUt.
saIMcaa ijasakao
ApnaI lahU sao‚
[sa Qara kao‚ [sa
gagana kao.
namana\ hO tuJakao
eo doSa maoro‚
eo doSa maoro‚ eo
doSa maoro.
maorI tao basa ek hI
Armaana‚
inaklao dma maora
basa yahI‚
ijasa imaTTI ko rja ¹
kNa maoM‚
maOnao janama ilayaa
plaa ¹ baZa.
namana\ hO tuJakao
eo doSa maoro‚
eo doSa maoro‚ eo
doSa maoro.
santaoYa kumaar
³svatMt`ta idvasa ko ]plaxya pr ricat´
Friday, 9 August 2013
" मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो "
मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करता
मैं अपना ही अपमान करता रहा,
अपने ही घेरे का चक्कर काट-काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होता रहा,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने कामों में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण!
मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
----- रवीन्द्रनाथ टैगोर
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करता
मैं अपना ही अपमान करता रहा,
अपने ही घेरे का चक्कर काट-काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होता रहा,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने कामों में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण!
मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
----- रवीन्द्रनाथ टैगोर
Monday, 5 August 2013
" हे ! मातृभूमि "
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।
---- " राम प्रसाद बिस्मिल "
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।
---- " राम प्रसाद बिस्मिल "
" वीर तुम बढे चलो "
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
हाथ में ध्वजा रहे। बाल दल सजा रहे।।
ध्वज कभी झुके नहीं। दल कभी स्र्के नहीं।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।।
सामने पहाड़ हो। सिंह की दहाड़ हो।
तुम निडर डरो नहीं। तुम निडर डटो वहीं।।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
प्रात हो कि रात हो। संग हो न साथ हो।।
सूर्य से बढ़े चलो। चन्द्र से बढ़े चलो।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।।
एक ध्वज लिये हुए। एक प्रण किये हुए।
मातृ भूमि के लिये। पितृ भूमि के लिये।।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
अन्न भूमि में भरा। वारि भूमि में भरा।।
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।।
---- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
हाथ में ध्वजा रहे। बाल दल सजा रहे।।
ध्वज कभी झुके नहीं। दल कभी स्र्के नहीं।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।।
सामने पहाड़ हो। सिंह की दहाड़ हो।
तुम निडर डरो नहीं। तुम निडर डटो वहीं।।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
प्रात हो कि रात हो। संग हो न साथ हो।।
सूर्य से बढ़े चलो। चन्द्र से बढ़े चलो।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।।
एक ध्वज लिये हुए। एक प्रण किये हुए।
मातृ भूमि के लिये। पितृ भूमि के लिये।।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।
अन्न भूमि में भरा। वारि भूमि में भरा।।
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो।
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो।।
---- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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