Saturday, 26 July 2014
Friday, 25 July 2014
" मुझे अपनी आगोश में ले लो "
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
---------- सन्तोष कुमार
थक गया हूँ मै इस जगत में,
बंदिशों के इस अथाह भँवर में,
तोड़कर सारी दुःख की बेड़ियाँ,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
समाज के इस ओछे बंधनों से,
कुचलते हुए इज्जत रूपी पगो से,
तोड़कर सारी दवानल ख्वाहिशें,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
कर्जदार हूँ मैं अपने प्यारे दोस्तों का,
इस वतन का और प्यारी बहन का,
अर्ज यही फिर ना मिले जन्म इन्सान का,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
अर्ज यही फिर ना मिले जन्म इन्सान का,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
सुना है की तुम परम दयालु हो,
हर जख्म की तुम मरहम हो,
मेरी हर थकान अब मिटा दो,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
जिंदगी के सफर का कोई मकसद है नहीं,
बहुत हो चुका अब और बेबसी, तन्हाई नहीं,
बस मुझ पर इतनी सी रहम कर दो,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
मुझे अपनी आगोश में ले लो !
ताकत नहीं बची लड़ने की अब ज़माने से,
छूटना चाहता हूँ मैं अब इस कैदखाने से,
हे मौत की देवी! अब मेरी तो सुधि ले लो,मुझे अपनी आगोश में ले लो !
---------- सन्तोष कुमार
Sunday, 13 July 2014
" गोलियाँ खायीं हैं सीने पर अपने वतन के लिए "
गोलियाँ खायीं हैं हमने
सीने पर अपने वतन के लिए,
हो गए शहीद ख़ुशी से,
सीने पर अपने वतन के लिए,
हो गए शहीद ख़ुशी से,
खिलता रहे अपना चमन,
हिन्द की ख़ातिर जिये हम,
हिन्द पर ही मर चले,
साथियों करना हिफाज़त हिन्द की,
अब हिन्द को हम,
तुम्हारे हवाले कर चले |
है आख़री ख्वाहिश हमारी,
है आखरी ये आरज़ू,
मृत्यु शैया पर सोने से पहले,
हिन्द को कर लें नमन,
गोलियाँ खायीं हैं हमने...............
जातियों के बंधनों से
पहले से हम मुक्त हैं,
प्रेम अंदर है हमारे,
प्रेम से हम युक्त हैं,
एक होकर ही लड़े |
अब मौंत पर संयुक्त हैं,
कभी नफरतों आँधियों से
डगमगाए ना कदम,
गोलियाँ खायीं हैं हमने..............
ज़िंदा रह सकते थे,
फिर भी मौंत हमने चुना,
स्वतंत्रता का ताना-बाना
आज हमने है बुना,
स्वतंत्रता अपनी है |
इसका कोई ना कर ले हरन,
है आखरी ये आरज़ू
खिलता रहे अपना चमन,
गोलियाँ खायीं हैं हमने,
सीने पर अपने वतन,
जय हिन्द !
Wednesday, 9 July 2014
तू ही राम है, तू रहीम है !
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
तेरी जात पात कुरान में,
तेरा दर्श वेद पुराण में ,
गुरु ग्रन्थ जी के बखान में,
तू प्रकाश अपना दिखा रहा ।
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
तेरी जात पात कुरान में,
तेरा दर्श वेद पुराण में ,
गुरु ग्रन्थ जी के बखान में,
तू प्रकाश अपना दिखा रहा ।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
अरदास है, कहीं कीर्तन,
कहीं राम धुन, कहीं आव्हन,
विधि भेद का है ये सब रचन,
तेरा भक्त तुझको बुला रहा ।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
अरदास है, कहीं कीर्तन,
कहीं राम धुन, कहीं आव्हन,
विधि भेद का है ये सब रचन,
तेरा भक्त तुझको बुला रहा ।
तू ही राम है, तू रहीम है,
तू करीम, कृष्ण, खुदा हुआ,
तू ही वाहे गुरु, तू येसु मसीह,
हर नाम में, तू समा रहा ।
Saturday, 22 March 2014
२३ मार्च शहीदी दिवस
'इन्दम
राष्ट्राय, इन्दम न मम', सब कुछ राष्ट्र का है, हमारा राष्ट्र के बिना कोई
अस्तित्व नहीं है।
दुख
की बात है कि यह पुस्तके अंतत: नष्ट कर दी गई। पुस्तके नष्ट की जा सकती
थीं, आवाज दबायी जा सकती थी लेकिन विचार तो बीज होता है। भगत सिंह, सुखदेव
और राजगुरु की फाँसी अंग्रेजी सरकार और उसकी सत्ता के ताबूत पर आखिरी कील
साबित हुई। जो भारत भूमि एसे सपूतों की जन्मस्थलि हो उसे तो आज़ाद होना ही
था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का बलिदान यह राष्ट्र कभी भुला न सकेगा।
" लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा।"
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..
वतन पर मिटने वालों को यही बाकी निशाँ होगा.."
जन्मों की गाथा लिख देश के नाम चले गये,
हर जन्म में करना है माँ भारती को प्रणाम लिख चले गये
यहाँ सिरफिरे भूलकर बलिदानों के बलिदान पड़े है स्वार्थ के चक्कर में
कर दिया जीवन दान माँ भारती के चरणों में
किसको कहते है वतनपरस्ती दिखा गये
देश के आगे होती जान कितनी सस्ती दिखा गये
सत्ता की पैरोकारी से पहले बलिदानी बलिदान दिखा गये
स्वार्थ को तज देश की राह दिखा दिखा गये
कोटिश: नमन भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तुम्हे हम शीश झुकाते हैं
कैसे कहे देश को हम फिर बहुत कमजोर पाते हैं
एक अलख और जगा जाओ ...
एक दीप देश के नाम मिटने का जला जाओ
कैसे बनाऊँ हर तिनके को मशाल सिखा जाओ...
23 मार्च 1931 शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फाँसी दी गई।
इसी दिन इनका परिवार मिलने आया तो केवल माता पिता के लिए ही आज्ञा मिली।
तब पिता ने कहा मिलेगे तो सभी, वरना कोई नही। तब उनके साथ उनका परिवार ही
नही वरन अन्याय के विरूद्ध नारे लगाती जनता भी थी।
फासी
के पहले भगत सिह सुखदेव व राजगुरु ने एक दुसरे से गले मिले तथा इंकलाब
जिन्दाबाद! साम्राज्यवाद मुर्दाबाद! का नारा लगा कर अपने फंदे को चूमा और
गले मे डाल कर सहज भाव से जल्लाद से कहा “कृपा कर आप इन फंदो को ठीक क्रर
लें।...........और उन्हे फासी दे दी गई।
खबर
आग की तरह फैली, लोग जेल परिसर में जमा होने लगे। इतना ही पता लगा कि लाशो
को जलाने के लिए बाहर भेज दिया गया है। लोग उस स्थान के खोज मे इधर उधर
बिखर गये। दूसरे दिन सबेरे लोगो ने देखा कि स्थान स्थान पर पोस्टर चिपके
है- “सिंख ग्रंथी और हिन्दु पंडितो के द्वारा भगतसिह, सुखदेव और राजगुरू का
अंतिम संस्कार कर दिया गया।“ जैसे ही घोषणा हुई सारा देश जल उठा। इस
विद्रोह को दबाने के लिए सरकार को कई शहरो मे सेनाए घुमानी पडी।
सरदार
बल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता मे कराची कॉग्रेस मे 29 मार्च को शोक प्रस्ताव
के बाद भगतसिह और उनके साथियो के संबंध मे प्रस्ताव पारित किया। जिसपर काफी विवाद और मतभेद हुआ, यह था "यह
कॉग्रेस किसी भी रूप अथवा प्रकार की राजनीतिक हिंसा से अपना संबध न रखते
हुए उसका समर्थन न करते हुए स्वर्गीय भगतसिह और उनके साथी सर्वश्री सुखदेव
और राजगुरू के बलिदान और बहादुरी की प्रशंसा को अभिलेखबद्ध करती है और इनकी
जीवन हानी पर शोकातुर परिवारो के साथ शोक प्रकट करती है।"
जेल मे रहते हुए भगतसिह ने कई पुस्तके लिखी जिनमे 4 महत्वपूर्ण थी
(1) आइडियल आव सोशलिज्म (समाजवाद का आदर्श)
(2) दि डोर टु डेथ (मृत्यु के द्वार पर)
(3) आटोबायग्राफी (आत्मकथा)
(4)
दि रिविल्यूशनरी मूवमेंट आव इडिया विद शार्ट बायग्राफिक स्कैचेस आव दि
रिवोल्यूशरीज (भारत मे क्रातिकारी आन्दोलन और क्रातिकारियो का संक्षिप्त
परिचय)।
" लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा।"
"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले..
वतन पर मिटने वालों को यही बाकी निशाँ होगा.."
जन्मों की गाथा लिख देश के नाम चले गये,
हर जन्म में करना है माँ भारती को प्रणाम लिख चले गये
यहाँ सिरफिरे भूलकर बलिदानों के बलिदान पड़े है स्वार्थ के चक्कर में
कर दिया जीवन दान माँ भारती के चरणों में
किसको कहते है वतनपरस्ती दिखा गये
देश के आगे होती जान कितनी सस्ती दिखा गये
सत्ता की पैरोकारी से पहले बलिदानी बलिदान दिखा गये
स्वार्थ को तज देश की राह दिखा दिखा गये
कोटिश: नमन भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु तुम्हे हम शीश झुकाते हैं
कैसे कहे देश को हम फिर बहुत कमजोर पाते हैं
एक अलख और जगा जाओ ...
एक दीप देश के नाम मिटने का जला जाओ
कैसे बनाऊँ हर तिनके को मशाल सिखा जाओ...
Monday, 24 February 2014
" अमर शहीदॊं कॊ पूरा-पूरा, संवैधानिक अधिकार चाहियॆ "
यॆ बिंदिया पायल झुमका, बॊलॊ बदलाव करॆंगॆ क्या ॥
कजरा रॆ, कजरा रॆ कॆ गानॆ, मां कॆ घाव भरॆंगॆ क्या ॥
अमर शहीदॊं का शॊणित, धिक्कार रहा है पौरुष कॊ ॥
वह धॊखॆबाज़ पड़ॊसी दॆखॊ, ललकार रहा है पौरुष कॊ ॥
श्रृँगार-गीत हॊं तुम्हॆं मुबारक, मॆरी कलम कॊ अंगार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ, अब भगतसिंह आज़ाद चाहियॆ ॥
सब कुछ लुटा दिया, क्या उनकॊ घर-द्वार नहीं था ॥
भूल गयॆ नातॆ-रिश्तॆ, क्या उनकॊ परिवार नहीं था ॥
क्या राखी कॆ धागॆ का, उन पर अधिकार नहीं था ॥
क्या बूढ़ी माँ की आँखॊं मॆं, बॆटॊं कॊ प्यार नहीं था ॥
श्रृँगार-गीत हॊं तुम्हॆं मुबारक, मॆरी कलम कॊ अंगार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ, अब भगतसिंह आज़ाद चाहियॆ ॥
आज़ादी की खातिर लड़तॆ, वह सूली पर झूल गयॆ ॥
आज़ाद दॆश कॆ वासी, बलिदान उन्ही का भूल गयॆ ॥
यॆ बिंदिया पायल झुमका, बॊलॊ बदलाव करॆंगॆ क्या ॥
कजरा रॆ, कजरा रॆ कॆ गानॆ, मां कॆ घाव भरॆंगॆ क्या ॥
उन अमर शहीदॊं कॊ पूरा-पूरा, संवैधानिक अधिकार चाहियॆ ॥
भारत की रक्षा हित फ़िर सॆ 'संतोष', अब भगतसिंह आज़ाद चाहियॆ ॥
Sunday, 26 January 2014
" जय जन भारत "
जय जन भारत जन- मन अभिमत जन गणतंत्र विधाता जय गणतंत्र विधाता गौरव भाल हिमालय उज्जवल हृदय हार गंगा जल कटि विंध्याचल सिंधु चरण तल महिमा शाश्वत गाता जय जन भारत ... हरे खेत लहरें नद-निर्झर जीवन शोभा उर्वर विश्व कर्मरत कोटि बाहुकर अगणित-पद-ध्रुव पथ पर जय जन भारत ... प्रथम सभ्यता ज्ञाता साम ध्वनित गुण गाता जय नव मानवता निर्माता सत्य अहिंसा दाता जय हे- जय हे- जय हे शांति अधिष्ठाता जय -जन भारत... -- सुमित्रा नंदन पंत |
Sunday, 12 January 2014
स्वामी विवेकानद जी के जन्म दिवस की देशवासियो को हार्दिक शुभ कामनाए !
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत !
उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं...
उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं...
स्वामी विवेकानंद युवाओं को किसी भी देश की उन्नति के गढ़ने का सबसे बड़ा औजार मानते थे। वह उनसे सीधी बात कर उन्हें प्रेरित करते थे। आज स्वामी विवेकानंद की 151वीं जयंती के मौके पर हम यहां उनकी एक ऐसी चिट्ठी का अंश यहां छाप रहे हैं, जो उन्होंने 19 नवम्बर 1894 को न्यू यॉर्क से अपने कुछ शिष्यों के नाम लिखी थी। विवेकानंद का वह संदेश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायी है:
हे वीर हृदय युवको,
यह बड़े संतोष की बात है कि अब तक हमारा काम बिना रोक-टोक के उन्नति ही करता चला आ रहा है। इसमें हमें सफलता मिलेगी और किसी बात की आवश्यता नहीं है, बस आवश्यकता है तो केवल प्रेम, किसी भी तरह की बेईमानी से बचने और धैर्य बनाए रखने की। इहलोक और परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के खत्म हो जाने या मृत्यु हो जाने के बाद कुछ नहीं रह जाता तब भी उसे ये मानना ही पड़ेगा कि स्वार्थ भरा जीवन ही असली मृत्यु है।
परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। ऐ बच्चो, सबके लिए तुम्हारे हृदय में दर्द हो- गरीब, कम पढ़े-लिखे, दबे हुए मनुष्यों के दुख का तुम अनुभव करो, संवेदना से तुम्हारा हृदय भरा हो। यदि ऐसा करने में कुछ भी संशय हो तो सब कुछ ईश्वर के सामने कह दो, तुरंत ही तुम्हे शक्ति, सहायता और अदम्य साहस का आभास होगा।
पिछले दस वर्षों से मैं अपना मूलमंत्र घोषित करता आया हूं - प्रयत्न करते रहो। और अब भी मैं कहता हूं कि हर हाल में प्रयत्न करते चलो। जब चारो ओर अंधकार ही अंधकार था, तब भी मैं प्रयत्न करने को कहता था, अब तो कुछ प्रकाश नजर आ रहा है। अतः अब भी यह कहूंगा कि प्रयत्न करते रहो। युवा दोस्तों अनंत नक्षत्रों वाले आकाश की ओर भयभीत दृष्टि से मत देखो, वह हमें कुचल डालेगा। धीरज रखो, फिर तुम देखोगे कि कई घंटो में वह सब का सब तुम्हारे पैरों तले आ गया है। धीरज रखो, न धन से काम होता है न यश काम आता है और न ही विद्या, प्रेम से ही सब कुछ होता है। चरित्र ही, कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़ कर अपना रास्ता बना लेता है।
अब हमारे सामने यह समस्या है- स्वाधीनता के बिना किसी प्रकार की उन्नति संभव नही है। हमारे पूर्वजों ने धार्मिक चिंता में हमें स्वाधीनता दी थी और उससे हमें आश्चर्यजनक बल मिला है, पर उन्होने समाज के पैर बड़ी-बड़ी जंजीरों से जकड़ दिए और उसके फलस्वरूप हमारा समाज, थोड़े शब्दों में कहें तो ये भयंकर और पीड़ादायक हो गया है। दूसरों को हानि न पहुंचाते हुए, मनुष्य को विचार करने और उसे व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और उसे खान-पान, पोशाक, पहनावा, विवाह-शादी हर एक बात में स्वाधीनता मिलनी चाहिए।
भारत को उठना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा, स्वहित की बुराइयों को ऐसा धक्का देना होगा कि वह टकराती हुई अटलांटिक महासागर में जा गिरे। ब्राह्मण हो या संन्यासी, किसी की भी बुराई को माफ नहीं किया जाना चाहिए। अत्याचारों का नामोनिशान न रहे, सभी को अधिक अन्न सुलभ हो।
लेकिन, ये व्यवस्था धीरे-धीरे लानी होगी, अपने धर्म पर अधिक जोर देकर और समाज को स्वाधीनता देकर यह करना होगा। प्राचीन धर्म से कर्मकांड की बुराइयों को हटा दो, तभी तुम्हे संसार का सबसे अच्छा धर्म मिल पाएगा। भारत का धर्म लेकर एक यूरोपीय समाज गढ़ा जा सकता है। मुझे विश्वास है कि यह संभव है और एक दिन ऐसा जरूर होगा। एक ऐसे राज्य की स्थापना करो, जहां अच्छे विचार वाले लोग रहें। फिर यही मुठ्ठी भर लोग सारे संसार में अपने विचार फैला देंगे। इसके लिए धन की जरूरत है सही, पर धन आ ही जाएगा। इस बीच में एक मुख्य केन्द्र बनाओ और भारत भर में उसकी शाखाएं खोलते जाओ। कभी भी मूर्खता से जन्मे किसी रीति-रिवाज को सहारा न देना। उत्साह से हृदय भर लो और सब जगह फैल जाओ।
नेतृत्व करते वक्त सबके दास बनो। नि:स्वार्थ रहो और कभी भी एक मित्र की पीठ पीछे निन्दा होते न सुनो। धैर्य रखो तभी सफलता तुम्हारे हाथ आएगी। काम करो बस काम करो, औरों के हित के लिए काम करना ही जीवन का लक्षण है। हां! एक बात पर सतर्क रहना, दूसरों पर अपना रौब जमाने की कोशिश न करना। दूसरों की भलाई में काम करना ही जीवन है।
मैं चाहता हूं कि हममें किसी प्रकार का कपट, कोई दुरंगी चाल न रहे, कोई दुष्टता न रहे। मैं हमेशा प्रभु पर निर्भर रहा हूं- सत्य पर निर्भर रहा हूं जो कि दिन के प्रकाश की तरह उज्जवल है। मरते वक्त मेरी विवेक बुद्धि पर ये धब्बा न रहे कि मैने नाम या यश पाने के लिए यह काम किया। दुराचार की गंध या बदनियती का नाम भी न रहने पाए। किसी प्रकार का टाल मटोल या छुपे तौर पर बदमाशी या गुप्त शब्द हममे न रहें। गुरु का विशेष कृपापात्र होने का दावा भी न करें। यहां तक कि हममें कोई गुरु भी न रहे।
साहसी बच्चों, आगे बढ़ो- चाहे धन आए या न आए, आदमी मिलें या न मिलें, तुम्हारे पास प्रेम है। क्या तुम्हे ईश्वर पर भरोसा है? बस आगे बढ़ो, तुम्हें कोई नही रोक सकेगा। सतर्क रहो। जो कुछ असत्य है, उसे पास न फटकने दो। सत्य पर दृढ़ रहो, तभी हम सफल होंगे। शायद थोड़ा अधिक वक्त लगे पर हम सफल होंगे। इस तरह काम करते जाओ कि मानों मैं कभी था ही नहीं। इस तरह काम करो कि तुम पर ही सारा काम निर्भर है। भविष्य की सदी तुम्हारी ओर देख रही है- भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है। काम करते रहो।
हे वीर हृदय युवको,
यह बड़े संतोष की बात है कि अब तक हमारा काम बिना रोक-टोक के उन्नति ही करता चला आ रहा है। इसमें हमें सफलता मिलेगी और किसी बात की आवश्यता नहीं है, बस आवश्यकता है तो केवल प्रेम, किसी भी तरह की बेईमानी से बचने और धैर्य बनाए रखने की। इहलोक और परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के खत्म हो जाने या मृत्यु हो जाने के बाद कुछ नहीं रह जाता तब भी उसे ये मानना ही पड़ेगा कि स्वार्थ भरा जीवन ही असली मृत्यु है।
परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। ऐ बच्चो, सबके लिए तुम्हारे हृदय में दर्द हो- गरीब, कम पढ़े-लिखे, दबे हुए मनुष्यों के दुख का तुम अनुभव करो, संवेदना से तुम्हारा हृदय भरा हो। यदि ऐसा करने में कुछ भी संशय हो तो सब कुछ ईश्वर के सामने कह दो, तुरंत ही तुम्हे शक्ति, सहायता और अदम्य साहस का आभास होगा।
पिछले दस वर्षों से मैं अपना मूलमंत्र घोषित करता आया हूं - प्रयत्न करते रहो। और अब भी मैं कहता हूं कि हर हाल में प्रयत्न करते चलो। जब चारो ओर अंधकार ही अंधकार था, तब भी मैं प्रयत्न करने को कहता था, अब तो कुछ प्रकाश नजर आ रहा है। अतः अब भी यह कहूंगा कि प्रयत्न करते रहो। युवा दोस्तों अनंत नक्षत्रों वाले आकाश की ओर भयभीत दृष्टि से मत देखो, वह हमें कुचल डालेगा। धीरज रखो, फिर तुम देखोगे कि कई घंटो में वह सब का सब तुम्हारे पैरों तले आ गया है। धीरज रखो, न धन से काम होता है न यश काम आता है और न ही विद्या, प्रेम से ही सब कुछ होता है। चरित्र ही, कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़ कर अपना रास्ता बना लेता है।
अब हमारे सामने यह समस्या है- स्वाधीनता के बिना किसी प्रकार की उन्नति संभव नही है। हमारे पूर्वजों ने धार्मिक चिंता में हमें स्वाधीनता दी थी और उससे हमें आश्चर्यजनक बल मिला है, पर उन्होने समाज के पैर बड़ी-बड़ी जंजीरों से जकड़ दिए और उसके फलस्वरूप हमारा समाज, थोड़े शब्दों में कहें तो ये भयंकर और पीड़ादायक हो गया है। दूसरों को हानि न पहुंचाते हुए, मनुष्य को विचार करने और उसे व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और उसे खान-पान, पोशाक, पहनावा, विवाह-शादी हर एक बात में स्वाधीनता मिलनी चाहिए।
भारत को उठना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा, स्वहित की बुराइयों को ऐसा धक्का देना होगा कि वह टकराती हुई अटलांटिक महासागर में जा गिरे। ब्राह्मण हो या संन्यासी, किसी की भी बुराई को माफ नहीं किया जाना चाहिए। अत्याचारों का नामोनिशान न रहे, सभी को अधिक अन्न सुलभ हो।
लेकिन, ये व्यवस्था धीरे-धीरे लानी होगी, अपने धर्म पर अधिक जोर देकर और समाज को स्वाधीनता देकर यह करना होगा। प्राचीन धर्म से कर्मकांड की बुराइयों को हटा दो, तभी तुम्हे संसार का सबसे अच्छा धर्म मिल पाएगा। भारत का धर्म लेकर एक यूरोपीय समाज गढ़ा जा सकता है। मुझे विश्वास है कि यह संभव है और एक दिन ऐसा जरूर होगा। एक ऐसे राज्य की स्थापना करो, जहां अच्छे विचार वाले लोग रहें। फिर यही मुठ्ठी भर लोग सारे संसार में अपने विचार फैला देंगे। इसके लिए धन की जरूरत है सही, पर धन आ ही जाएगा। इस बीच में एक मुख्य केन्द्र बनाओ और भारत भर में उसकी शाखाएं खोलते जाओ। कभी भी मूर्खता से जन्मे किसी रीति-रिवाज को सहारा न देना। उत्साह से हृदय भर लो और सब जगह फैल जाओ।
नेतृत्व करते वक्त सबके दास बनो। नि:स्वार्थ रहो और कभी भी एक मित्र की पीठ पीछे निन्दा होते न सुनो। धैर्य रखो तभी सफलता तुम्हारे हाथ आएगी। काम करो बस काम करो, औरों के हित के लिए काम करना ही जीवन का लक्षण है। हां! एक बात पर सतर्क रहना, दूसरों पर अपना रौब जमाने की कोशिश न करना। दूसरों की भलाई में काम करना ही जीवन है।
मैं चाहता हूं कि हममें किसी प्रकार का कपट, कोई दुरंगी चाल न रहे, कोई दुष्टता न रहे। मैं हमेशा प्रभु पर निर्भर रहा हूं- सत्य पर निर्भर रहा हूं जो कि दिन के प्रकाश की तरह उज्जवल है। मरते वक्त मेरी विवेक बुद्धि पर ये धब्बा न रहे कि मैने नाम या यश पाने के लिए यह काम किया। दुराचार की गंध या बदनियती का नाम भी न रहने पाए। किसी प्रकार का टाल मटोल या छुपे तौर पर बदमाशी या गुप्त शब्द हममे न रहें। गुरु का विशेष कृपापात्र होने का दावा भी न करें। यहां तक कि हममें कोई गुरु भी न रहे।
साहसी बच्चों, आगे बढ़ो- चाहे धन आए या न आए, आदमी मिलें या न मिलें, तुम्हारे पास प्रेम है। क्या तुम्हे ईश्वर पर भरोसा है? बस आगे बढ़ो, तुम्हें कोई नही रोक सकेगा। सतर्क रहो। जो कुछ असत्य है, उसे पास न फटकने दो। सत्य पर दृढ़ रहो, तभी हम सफल होंगे। शायद थोड़ा अधिक वक्त लगे पर हम सफल होंगे। इस तरह काम करते जाओ कि मानों मैं कभी था ही नहीं। इस तरह काम करो कि तुम पर ही सारा काम निर्भर है। भविष्य की सदी तुम्हारी ओर देख रही है- भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है। काम करते रहो।
तुम लोगों को मेरा आर्शीवाद
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