Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Friday, 12 May 2017

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!
नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी!
नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी!
प्रणय-प्रसारिणी, नमो अरिष्ट-वारिणी!
नमो मनुष्य की शुभेषणा-प्रचारिणी!
नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!



हम न किसी का चाहते तनिक, अहित, अपकार
प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार
सत्य न्याय के हेतु, फहर फहर ओ केतु
हम विरचेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु
पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!



तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग
दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग
सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़
कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर
करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान
अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान!
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!



नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो! 

                            
                                              

                  ---   रामधारी सिंह "दिनकर"

Monday, 23 March 2015


उनका मकसद था

आवाज़ को दबाना

अग्नि को बुझाना

सुगंध को कैद करना


तुम्हारा मकसद था

आवाज़ बुलंद करना

अग्नि को हवा देना

सुगंध को विस्तार देना


वे क़ायर थे

उन्होंने तुम्हें असमय मारा

तुम्हारी राख को ठंडा होने से पहले ही

प्रवाहित कर दिया जल में


जल ने

अग्नि को और भड़का दिया

तुम्हारी आवाज़ शंखनाद में तबदील हो गई

कोटि-कोटि जनता की प्राणवायु हो गए तुम!!

 

 

 

Sunday, 22 March 2015

क्रांतिकारी ही नहीं शायर भी थे शहीद भगत सिंह

शहीद भगत सिंह बहुत ही बहादुर होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी अव्वल आने वाले होनहार छात्र थे। उनकी पढ़ाई में काफी गहरी दिलचस्पी थी लेकिन वे आजादी के दीवाने थे। सिर्फ 23 साल की उम्र में जिस समय युवा शादी के सपने संजोते हैं वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। भगत सिंह की तुलना महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा से की जाती है। युवाओं में इन दोनों क्रांतिकारियों का काफी प्रभाव अभी भी दिखाई देता है। भगत सिंह को पढ़ाई के साथ शायरी का भी शौक था। वे उर्दू के काफी जानकार थे और उन्होंने उर्दू में ही शायरी लिखी है। भगत सिंह की शायरी में गालिब की भी छाप दिखाई देती है। भगत सिंह के जन्मदिन पर हम आपके लिए लाए हैं उनकी पसंदीदा शायरी- 

 

यह न थी हमारी किस्मत जो विसाले यार होता

अगर और जीते रहते यही इन्तेज़ार होता

 

तेरे वादे पर जिऐं हम तो यह जान छूट जाना

कि खुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

 

तेरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था अहदे फ़र्दा

कभी तू न तोड़ सकता अगर इस्तेवार होता

 

यह कहाँ की दोस्ती है (कि) बने हैं दोस्त नासेह

कोई चारासाज़ होता कोई ग़म गुसार होता

 

कहूं किससे मैं के क्या है शबे ग़म बुरी बला है

मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता!

 
 

Monday, 5 January 2015

" हम अपने को भूले "

कुमकुम पुष्प अगरबत्ती से
क्यों न स्वागत करते
नये वर्ष की नव चौखट पर
क्यों न दीपक धरते?

नया साल आनेवाला है
खुशी खुशी चिल्लाते
हँसते हँसते शाम ढले
मदिरालय में घुस जाते।

बियर रम और व्हिस्की में ही
नया वर्ष दिखता है
कौड़ी दो कौड़ी में कैसे
प्रजा तंत्र बिकता है ।

मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारों में
क्यों अरदास न करते
नये वर्ष की नव चौखट पर
क्यों न दीपक धरते?

चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा
नया वर्ष अपना है
किंतु अपना नया वर्ष तो
जैसे  है एक सपना ।

नई हवा की चकाचौंध में
हम अपने को भूले
हमको तो अच्छे लगते अब
पश्चिम के रीति रिवाज ।

क्यों न घंटे शंख बजा
भारत मां की जय कहते
नये वर्ष की नव चौखट पर
क्यों न दीपक धरते?




Friday, 25 July 2014

" मुझे अपनी आगोश में ले लो "

थक गया हूँ मै इस जगत में,
बंदिशों के इस अथाह भँवर में,
तोड़कर सारी दुःख की बेड़ियाँ,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !

समाज के इस ओछे बंधनों से,
कुचलते हुए इज्जत रूपी पगो से,
तोड़कर सारी दवानल ख्वाहिशें,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !

कर्जदार हूँ मैं अपने प्यारे दोस्तों का,
इस वतन का और प्यारी बहन का,
अर्ज यही फिर ना मिले जन्म इन्सान का,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !

सुना है की तुम परम दयालु हो,
हर जख्म की तुम मरहम हो,
मेरी हर थकान अब मिटा दो,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !

जिंदगी के सफर का कोई मकसद है नहीं,
बहुत हो चुका अब और बेबसी, तन्हाई नहीं,
बस मुझ पर इतनी सी रहम कर दो,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !

ताकत नहीं बची लड़ने की अब ज़माने से,
छूटना चाहता हूँ मैं अब इस कैदखाने से,
हे मौत की देवी! अब मेरी तो सुधि ले लो,
मुझे अपनी आगोश में ले लो !

                                        
                                        ----------   सन्तोष कुमार