Bharat Mata Ki Jai

Bharat Mata Ki Jai
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.

Sunday 26 January 2014

" जय जन भारत "



जय जन भारत जन- मन अभिमत

जन गणतंत्र विधाता
जय गणतंत्र विधाता

गौरव भाल हिमालय उज्जवल
हृदय हार गंगा जल
कटि विंध्याचल सिंधु चरण तल
महिमा शाश्वत गाता
जय जन भारत ...

हरे खेत लहरें नद-निर्झर
जीवन शोभा उर्वर
विश्व कर्मरत कोटि बाहुकर
अगणित-पद-ध्रुव पथ पर
जय जन भारत ...

प्रथम सभ्यता ज्ञाता
साम ध्वनित गुण गाता
जय नव मानवता निर्माता
सत्य अहिंसा दाता

जय हे- जय हे- जय हे
शांति अधिष्ठाता
जय -जन भारत...

              --  सुमित्रा नंदन पंत



Sunday 12 January 2014

स्वामी विवेकानद जी के जन्म दिवस की देशवासियो को हार्दिक शुभ कामनाए !

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत !
उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं...


स्वामी विवेकानंद जी का युवाओ  को पत्र :
स्वामी विवेकानंद युवाओं को किसी भी देश की उन्नति के गढ़ने का सबसे बड़ा औजार मानते थे। वह उनसे सीधी बात कर उन्हें प्रेरित करते थे। आज स्वामी विवेकानंद की 151वीं जयंती के मौके पर हम यहां उनकी एक ऐसी चिट्ठी का अंश यहां छाप रहे हैं, जो उन्होंने 19 नवम्बर 1894 को न्यू यॉर्क से अपने कुछ शिष्यों के नाम लिखी थी। विवेकानंद का वह संदेश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायी है:

हे वीर हृदय युवको,

यह बड़े संतोष की बात है कि अब तक हमारा काम बिना रोक-टोक के उन्नति ही करता चला आ रहा है। इसमें हमें सफलता मिलेगी और किसी बात की आवश्यता नहीं है, बस आवश्यकता है तो केवल प्रेम, किसी भी तरह की बेईमानी से बचने और धैर्य बनाए रखने की। इहलोक और परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के खत्म हो जाने या मृत्यु हो जाने के बाद कुछ नहीं रह जाता तब भी उसे ये मानना ही पड़ेगा कि स्वार्थ भरा जीवन ही असली मृत्यु है।

परोपकार ही जीवन है, परोपकार न करना ही मृत्यु है। ऐ बच्चो, सबके लिए तुम्हारे हृदय में दर्द हो- गरीब, कम पढ़े-लिखे, दबे हुए मनुष्यों के दुख का तुम अनुभव करो, संवेदना से तुम्हारा हृदय भरा हो। यदि ऐसा करने में कुछ भी संशय हो तो सब कुछ ईश्वर के सामने कह दो, तुरंत ही तुम्हे शक्ति, सहायता और अदम्य साहस का आभास होगा।

पिछले दस वर्षों से मैं अपना मूलमंत्र घोषित करता आया हूं - प्रयत्न करते रहो। और अब भी मैं कहता हूं कि हर हाल में प्रयत्न करते चलो। जब चारो ओर अंधकार ही अंधकार था, तब भी मैं प्रयत्न करने को कहता था, अब तो कुछ प्रकाश नजर आ रहा है। अतः अब भी यह कहूंगा कि प्रयत्न करते रहो। युवा दोस्तों अनंत नक्षत्रों वाले आकाश की ओर भयभीत दृष्टि से मत देखो, वह हमें कुचल डालेगा। धीरज रखो, फिर तुम देखोगे कि कई घंटो में वह सब का सब तुम्हारे पैरों तले आ गया है। धीरज रखो, न धन से काम होता है न यश काम आता है और न ही विद्या, प्रेम से ही सब कुछ होता है। चरित्र ही, कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़ कर अपना रास्ता बना लेता है।

अब हमारे सामने यह समस्या है- स्वाधीनता के बिना किसी प्रकार की उन्नति संभव नही है। हमारे पूर्वजों ने धार्मिक चिंता में हमें स्वाधीनता दी थी और उससे हमें आश्चर्यजनक बल मिला है, पर उन्होने समाज के पैर बड़ी-बड़ी जंजीरों से जकड़ दिए और उसके फलस्वरूप हमारा समाज, थोड़े शब्दों में कहें तो ये भयंकर और पीड़ादायक हो गया है। दूसरों को हानि न पहुंचाते हुए, मनुष्य को विचार करने और उसे व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और उसे खान-पान, पोशाक, पहनावा, विवाह-शादी हर एक बात में स्वाधीनता मिलनी चाहिए।

भारत को उठना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा, स्वहित की बुराइयों को ऐसा धक्का देना होगा कि वह टकराती हुई अटलांटिक महासागर में जा गिरे। ब्राह्मण हो या संन्यासी, किसी की भी बुराई को माफ नहीं किया जाना चाहिए। अत्याचारों का नामोनिशान न रहे, सभी को अधिक अन्न सुलभ हो।

लेकिन, ये व्यवस्था धीरे-धीरे लानी होगी, अपने धर्म पर अधिक जोर देकर और समाज को स्वाधीनता देकर यह करना होगा। प्राचीन धर्म से कर्मकांड की बुराइयों को हटा दो, तभी तुम्हे संसार का सबसे अच्छा धर्म मिल पाएगा। भारत का धर्म लेकर एक यूरोपीय समाज गढ़ा जा सकता है। मुझे विश्वास है कि यह संभव है और एक दिन ऐसा जरूर होगा। एक ऐसे राज्य की स्थापना करो, जहां अच्छे विचार वाले लोग रहें। फिर यही मुठ्ठी भर लोग सारे संसार में अपने विचार फैला देंगे। इसके लिए धन की जरूरत है सही, पर धन आ ही जाएगा। इस बीच में एक मुख्य केन्द्र बनाओ और भारत भर में उसकी शाखाएं खोलते जाओ। कभी भी मूर्खता से जन्मे किसी रीति-रिवाज को सहारा न देना। उत्साह से हृदय भर लो और सब जगह फैल जाओ।

नेतृत्व करते वक्त सबके दास बनो। नि:स्वार्थ रहो और कभी भी एक मित्र की पीठ पीछे निन्दा होते न सुनो। धैर्य रखो तभी सफलता तुम्हारे हाथ आएगी। काम करो बस काम करो, औरों के हित के लिए काम करना ही जीवन का लक्षण है। हां! एक बात पर सतर्क रहना, दूसरों पर अपना रौब जमाने की कोशिश न करना। दूसरों की भलाई में काम करना ही जीवन है।

मैं चाहता हूं कि हममें किसी प्रकार का कपट, कोई दुरंगी चाल न रहे, कोई दुष्टता न रहे। मैं हमेशा प्रभु पर निर्भर रहा हूं- सत्य पर निर्भर रहा हूं जो कि दिन के प्रकाश की तरह उज्जवल है। मरते वक्त मेरी विवेक बुद्धि पर ये धब्बा न रहे कि मैने नाम या यश पाने के लिए यह काम किया। दुराचार की गंध या बदनियती का नाम भी न रहने पाए। किसी प्रकार का टाल मटोल या छुपे तौर पर बदमाशी या गुप्त शब्द हममे न रहें। गुरु का विशेष कृपापात्र होने का दावा भी न करें। यहां तक कि हममें कोई गुरु भी न रहे।

साहसी बच्चों, आगे बढ़ो- चाहे धन आए या न आए, आदमी मिलें या न मिलें, तुम्हारे पास प्रेम है। क्या तुम्हे ईश्वर पर भरोसा है? बस आगे बढ़ो, तुम्हें कोई नही रोक सकेगा। सतर्क रहो। जो कुछ असत्य है, उसे पास न फटकने दो। सत्य पर दृढ़ रहो, तभी हम सफल होंगे। शायद थोड़ा अधिक वक्त लगे पर हम सफल होंगे। इस तरह काम करते जाओ कि मानों मैं कभी था ही नहीं। इस तरह काम करो कि तुम पर ही सारा काम निर्भर है। भविष्य की सदी तुम्हारी ओर देख रही है- भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है। काम करते रहो। 

तुम लोगों को मेरा आर्शीवाद